BNSS धारा 439 – जमानत (Bail) का अधिकार और प्रक्रिया

BNSS धारा 439 – जमानत (Bail) का अधिकार और प्रक्रिया

श्रेणी: आपराधिक प्रक्रिया | BNSS Series


✍️ परिचय:

जब किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता की बहाली के लिए जमानत की मांग कर सकता है। BNSS की धारा 439 इस जमानत प्रक्रिया का कानूनी आधार देती है, विशेष रूप से गंभीर अपराधों (non-bailable offences) में।


📜 धारा 439 – क्या कहती है?

BNSS की धारा 439 के अंतर्गत:

  • सत्र न्यायालय (Sessions Court) या उच्च न्यायालय (High Court) को अधिकार होता है कि वे किसी गैर-जमानती अपराध में आरोपी को जमानत पर रिहा कर सकते हैं।

  • न्यायालय चाहे तो जमानत की शर्तें निर्धारित कर सकता है, जैसे:

    • आरोपी जांच में सहयोग करेगा

    • सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा

    • अदालत में उपस्थित होगा


⚖️ जमानत के लिए किन बातों का ध्यान रखा जाता है:

  1. अपराध की प्रकृति और गंभीरता

  2. आरोपी का आपराधिक इतिहास

  3. सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना

  4. फरार होने की आशंका

  5. पीड़ित पर दबाव बनाने की संभावना


📌 महत्वपूर्ण बदलाव (BNSS में):

बिंदु CrPC (पुराना कानून) BNSS (नया कानून)
प्रक्रिया लगभग समान अधिक डिजिटल और रिकॉर्ड आधारित
सुनवाई केवल कागज़ों पर निर्भर ऑनलाइन रिपोर्ट और रिकॉर्ड का उपयोग संभव
विशेष मामले जैसे बलात्कार, POCSO, NDPS पीड़िता का पक्ष सुनना अनिवार्य

🧑‍⚖️ महिला या बच्चे के खिलाफ अपराध हो तो:

यदि आरोपी पर बलात्कार, POCSO, या घरेलू हिंसा जैसे अपराध का आरोप है, तो अदालत पीड़िता को सुनने के बाद ही जमानत दे सकती है


🎯 उदाहरण:

  • किसी व्यक्ति पर गंभीर मारपीट का आरोप है (धारा 117 BNS) – उसे सेशन कोर्ट में धारा 439 के अंतर्गत बेल याचिका दाखिल करनी होगी।

  • यदि आरोपी ने अपराध के समय कोई हथियार इस्तेमाल किया हो, तो अदालत सख्त शर्तों के साथ ही जमानत देगी।


खास बात:

जमानत कोई अधिकार नहीं, बल्कि न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति है। न्यायालय हर केस की परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेता है।


निष्कर्ष:

BNSS धारा 439 यह सुनिश्चित करती है कि एक ओर जहां निर्दोष व्यक्ति को न्याय मिले, वहीं दूसरी ओर अपराधी प्रक्रिया से बच न पाए। यह कानून न्याय और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास है।


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एडवोकेट अनुराग गुप्ता
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