BNSS धारा 187 – पुलिस रिमांड और न्यायिक हिरासत: अधिकार, सीमा और प्रक्रिया
श्रेणी: आपराधिक प्रक्रिया | BNSS Series
✍️ परिचय:
जब किसी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है, तब पुलिस को उसकी पूछताछ के लिए समय चाहिए होता है। इसी के लिए ‘पुलिस रिमांड’ और ‘न्यायिक हिरासत’ की प्रक्रिया लागू होती है। BNSS की धारा 187, CrPC की धारा 167 के स्थान पर यह प्रक्रिया तय करती है।
📜 धारा 187 – मुख्य प्रावधान:
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24 घंटे में पेशी अनिवार्य:
गिरफ्तार आरोपी को पुलिस 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है (धारा 58 के अनुसार)। -
पुलिस रिमांड का अनुरोध:
यदि पुलिस को पूछताछ के लिए और समय चाहिए, तो मजिस्ट्रेट से रिमांड मांगा जाता है। -
पुलिस रिमांड की अधिकतम सीमा:
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अधिकतम 15 दिन तक की पुलिस रिमांड दी जा सकती है।
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यह लगातार या चरणबद्ध रूप से दी जा सकती है।
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न्यायिक हिरासत:
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अगर पुलिस रिमांड की जरूरत नहीं है, तो आरोपी को जेल भेजा जा सकता है (न्यायिक हिरासत)।
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सामान्य अपराध में अधिकतम 60 दिन, गंभीर अपराध में 90 दिन की हिरासत दी जा सकती है।
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महिला और बीमार आरोपी के लिए प्रावधान:
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बीमार, महिला या बच्चे को विशेष सुरक्षा और सुविधा मिलती है।
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महिला की रिमांड के दौरान महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है।
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📌 BNSS में नया क्या है?
| बिंदु | CrPC धारा 167 | BNSS धारा 187 |
|---|---|---|
| रिमांड का प्रारूप | पेपर आधारित | डिजिटल माध्यम से आवेदन संभव |
| रिमांड अवधि | अस्पष्ट रूप में प्रयोग | सख्त सीमा और चरणबद्ध स्पष्टता |
| महिला/अल्पवयस्कों के लिए सुरक्षा | सीमित | विशेष स्पष्ट सुरक्षा नियम |
🎯 उदाहरण:
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एक व्यक्ति को ₹10 लाख की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने मजिस्ट्रेट से 7 दिन की रिमांड मांगी और जांच पूरी होने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
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एक महिला आरोपी को बीमार होने के कारण घर में नजरबंद रखा गया, कोर्ट के आदेश से।
❗ ध्यान दें:
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पुलिस रिमांड मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना नहीं दी जा सकती।
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आरोपी को रिमांड के दौरान वकील से मिलने का अधिकार होता है।
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रिमांड के खिलाफ उच्च अदालत में अपील की जा सकती है।
निष्कर्ष:
BNSS की धारा 187 रिमांड और हिरासत की प्रक्रिया को ज़्यादा पारदर्शी, सुरक्षित और मानवाधिकार के अनुकूल बनाती है। यह न केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि पुलिस जांच को भी न्यायसंगत बनाती है।
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