तलाक का कानून: प्रक्रिया, अधिकार और ज़रूरी जानकारियाँ
प्रस्तावना
शादी एक सामाजिक और कानूनी संबंध है, लेकिन जब यह रिश्ता असहनीय हो जाए, तो तलाक एक वैकल्पिक रास्ता बन जाता है। भारत में तलाक से जुड़े कानून धर्म और विवाह अधिनियमों पर आधारित होते हैं। इस लेख में हम तलाक की प्रक्रिया, प्रकार, पुरुषों व महिलाओं के अधिकार, और बच्चों की कस्टडी से जुड़े पहलुओं को समझेंगे।
1. भारत में तलाक के प्रमुख कानून
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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों पर लागू
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मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (शरीयत) – मुस्लिम समुदाय पर लागू
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विशेष विवाह अधिनियम, 1954 – अंतरधार्मिक विवाह या कोर्ट मैरिज वालों के लिए
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ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 और भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 – ईसाई समुदाय के लिए
2. तलाक के प्रकार (हिंदू कानून के अनुसार)
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आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce):
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दोनों पति-पत्नी सहमत हों कि वे साथ नहीं रह सकते।
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न्यूनतम 1 वर्ष का अलगाव आवश्यक।
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फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल होती है।
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एकतरफा तलाक (Contested Divorce):
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जब एक पक्ष तलाक चाहता हो और दूसरा नहीं मानता।
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निम्न आधारों पर संभव:
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क्रूरता
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व्यभिचार (अविवाहित संबंध)
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धर्म परिवर्तन
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मानसिक बीमारी
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परित्याग
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यौन संबंध स्थापित न करना
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संक्रामक रोग आदि
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3. मुस्लिम कानून के अंतर्गत तलाक
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पुरुष के लिए: तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक – अब गैरकानूनी)
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महिला के लिए: खुला (महिला द्वारा तलाक की मांग), फस्ख (क़ाज़ी के माध्यम से), मुतालका
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सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। अब यह अपराध माना जाता है।
4. विशेष विवाह अधिनियम के तहत तलाक
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यह अधिनियम उन लोगों पर लागू होता है जिनकी शादी अंतरधार्मिक या कोर्ट मैरिज के तहत हुई हो।
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तलाक की प्रक्रिया हिंदू विवाह अधिनियम जैसी ही होती है।
5. महिलाओं के अधिकार तलाक के बाद
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भरण-पोषण का अधिकार (Maintenance) – पति को पत्नी को आर्थिक सहायता देनी होती है।
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मेहर (Muslim Law) – शादी के समय तय रकम जो तलाक के बाद देना आवश्यक होता है।
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संपत्ति में हिस्सा नहीं, लेकिन अदालत आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
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पुनर्विवाह का अधिकार – पुरुष और महिला दोनों को तलाक के बाद पुनर्विवाह का अधिकार है।
6. बच्चों की कस्टडी
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तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी कोर्ट तय करती है, यह बच्चे की भलाई को देखकर तय होती है।
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संयुक्त कस्टडी, मातृ कस्टडी, या पैतृक कस्टडी संभव है।
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बच्चों का भरण-पोषण दोनों अभिभावकों की जिम्मेदारी होती है।
7. तलाक की प्रक्रिया कैसे शुरू करें?
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वकील से परामर्श लें
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तलाक याचिका तैयार करें
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फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करें
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यदि आपसी सहमति है, तो दूसरी सुनवाई के बाद डिक्री मिल सकती है
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एकतरफा मामलों में गवाह, साक्ष्य और लंबी सुनवाई होती है
निष्कर्ष
तलाक एक संवेदनशील और भावनात्मक निर्णय होता है, लेकिन जब यह आवश्यक हो तो कानून ने हर नागरिक को सुरक्षित, गरिमामयी और न्यायपूर्ण प्रक्रिया प्रदान की है। ज़रूरी है कि व्यक्ति अपने अधिकारों और विकल्पों की जानकारी रखे और योग्य कानूनी सलाह से प्रक्रिया को आगे बढ़ाए।
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