व्यभिचार (Adultery) – धारा 13(1)(i) और इसका कानूनी प्रभाव

 

व्यभिचार (Adultery) – धारा 13(1)(i) और इसका कानूनी प्रभाव

भारत में विवाह एक पवित्र संस्था मानी जाती है, और इसके संरक्षण के लिए कई कानूनी प्रावधान किए गए हैं। इन प्रावधानों में से एक महत्वपूर्ण प्रावधान व्यभिचार (Adultery) से संबंधित है, जिसे भारतीय दंड संहिता और विशेष विवाह अधिनियम में निर्दिष्ट किया गया है। धारा 13(1)(i) विशेष रूप से तलाक के मामलों में व्यभिचार के कारण विवाह विच्छेद के लिए एक आधार प्रदान करती है। इस ब्लॉग में हम व्यभिचार और धारा 13(1)(i) के कानूनी पहलुओं पर चर्चा करेंगे।


1. व्यभिचार (Adultery) क्या है?

व्यभिचार तब होता है जब कोई व्यक्ति अपनी वैवाहिक प्रतिबद्धता का उल्लंघन करता है और शादी के बाहर किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता है। यह विवाह के विश्वास और सम्मान को ठेस पहुंचाता है और इस कारण से यह एक गंभीर कानूनी मुद्दा बन सकता है।

भारत में व्यभिचार को धारा 497, भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराध माना जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले (2018) के बाद इसे अपराध से हटा दिया गया। इसके बावजूद, धारा 13(1)(i) हिंदू विवाह अधिनियम और अन्य विशेष विवाह अधिनियम में तलाक के एक आधार के रूप में व्यभिचार को मान्यता देती है।


2. धारा 13(1)(i) क्या है? (Section 13(1)(i) of the Hindu Marriage Act)

धारा 13(1)(i) हिंदू विवाह अधिनियम (1955) के तहत एक प्रावधान है जो तलाक के मामलों में व्यभिचार को एक वैध आधार के रूप में प्रस्तुत करता है। इस धारा के तहत, यदि किसी पति या पत्नी में से एक व्यक्ति ने विवाहेतर संबंध (व्यभिचार) बनाए हैं, तो दूसरा पति या पत्नी तलाक का दावा कर सकता है।

धारा 13(1)(i) के तहत तलाक के लिए शर्तें:

  1. व्यभिचार के प्रमाण: जिस व्यक्ति ने व्यभिचार किया है, उसे साबित करना होता है कि वह व्यक्ति किसी तीसरे पक्ष के साथ शारीरिक संबंध बना रहा था, जबकि वह विवाहित था।

  2. आधिकारिक रूप से विवाह विच्छेद: जब किसी व्यक्ति ने व्यभिचार किया हो और उसका साथी तलाक चाहता हो, तो उसे अदालत में यह सिद्ध करना होता है कि वह विवाहेतर संबंधों में संलिप्त था।

  3. संलिप्तता का उद्देश्य: यहां पर इच्छा और निर्णय महत्वपूर्ण होते हैं। व्यभिचार के मामले में यह भी देखा जाता है कि क्या विवाहेतर संबंध के दौरान दोनों पार्टियों की सहमति थी या नहीं।


3. व्यभिचार के कानूनी प्रभाव (Legal Consequences of Adultery)

A. तलाक (Divorce)

  • व्यभिचार के कारण तलाक की याचिका धारा 13(1)(i) के तहत दायर की जा सकती है। यह तब किया जा सकता है जब विवाहेतर संबंध एक पार्टनर द्वारा दूसरे पार्टनर के लिए असहनीय बना दिया हो।

  • तलाक के बाद, व्यभिचार करने वाले व्यक्ति को संपत्ति का अधिकार या भरण-पोषण में कटौती हो सकती है, क्योंकि उसे एक कानून के तहत विवाह के अनुशासन का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया जाता है।

B. भरण-पोषण का अधिकार (Right to Maintenance)

  • जब कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी से व्यभिचार के कारण तलाक प्राप्त करता है, तो वह भरण-पोषण का दावा कर सकता है। हालांकि, व्यभिचार करने वाले व्यक्ति के लिए भरण-पोषण में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि अदालत यह मान सकती है कि उसने विवाहेतर संबंधों के कारण रिश्ते को नष्ट किया।

C. संपत्ति का अधिकार (Property Rights)

  • अगर तलाक के कारण व्यभिचार साबित होता है, तो विवाह के समय के संपत्ति वितरण में पत्नी को अधिक अधिकार मिल सकते हैं, जबकि पति को संपत्ति में कम हिस्सा मिल सकता है।

D. बच्चों की कस्टडी (Child Custody)

  • यदि कोई व्यभिचार के कारण तलाक का कारण बनता है, तो यह बच्चों की कस्टडी पर भी प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, अदालत बच्चों की कस्टडी देते वक्त सिर्फ व्यभिचार को नहीं, बल्कि बच्चों की भलाई को ध्यान में रखेगी।

  • हालांकि, व्यभिचार के कारण तलाक का परिणाम बच्चों के लिए नकारात्मक हो सकता है, यह इस पर निर्भर करता है कि यह मामला किस तरह से अदालत में प्रस्तुत किया गया है।


4. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और व्यभिचार (Supreme Court Judgment and Adultery)

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में अपने ऐतिहासिक फैसले में धारा 497, IPC को संविधान के खिलाफ घोषित कर दिया था और इसे अपराध से हटा दिया। अदालत का कहना था कि "व्यभिचार दो वयस्कों के बीच एक निजी मामला होना चाहिए और इसमें राज्य का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।"

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे तलाक के कारण के रूप में विवाहित जोड़ों के बीच व्यक्तिगत निर्णय पर छोड़ दिया, जिससे महिलाओं और पुरुषों दोनों को समान अधिकार प्राप्त हुए। इसके बावजूद, धारा 13(1)(i) में यह प्रावधान अभी भी मौजूद है, जो कि तलाक के मामलों में व्यभिचार को एक मान्य आधार प्रदान करता है।


5. व्यभिचार के मामले में कुछ सामान्य सवाल (FAQs)

Q1. क्या व्यभिचार के लिए तलाक तुरंत मिल सकता है?

✔ नहीं, तलाक के लिए अदालत में व्यभिचार के पुख्ता प्रमाण और साक्ष्य की आवश्यकता होती है। यह एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है और इसमें समय लग सकता है।

Q2. क्या व्यभिचार के मामले में पत्नी को अधिक अधिकार मिलते हैं?

✔ हां, व्यभिचार के मामले में पत्नी को तलाक के बाद भरण-पोषण और संपत्ति में अधिक अधिकार मिल सकते हैं।

Q3. क्या व्यभिचार केवल महिलाओं द्वारा किया गया अपराध है?

✔ नहीं, व्यभिचार दोनों, पुरुष और महिला, दोनों द्वारा किया जा सकता है। भारत में व्यभिचार के मामले में दोनों पक्षों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

Q4. क्या व्यभिचार के आरोप के बिना भी तलाक प्राप्त किया जा सकता है?

✔ हां, अगर व्यभिचार के आरोप नहीं लगाए जाते, तो भी तलाक के लिए अन्य आधार जैसे मानसिक क्रूरता (mental cruelty) या विवाहेतर संबंध के आधार पर तलाक प्राप्त किया जा सकता है।


6. निष्कर्ष (Conclusion)

व्यभिचार एक गंभीर कानूनी मुद्दा है, जो विवाह के अनुशासन और विश्वास को तोड़ता है। धारा 13(1)(i) के तहत, व्यभिचार को तलाक का एक वैध कारण माना गया है, जिससे प्रभावित पक्ष को तलाक का अधिकार प्राप्त होता है। हालांकि, अदालत में व्यभिचार को साबित करना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह महिलाओं और पुरुषों दोनों को अपने वैवाहिक जीवन में न्याय पाने का अवसर प्रदान करता है।

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(इमेज आइडिया: विवाह, तलाक की कानूनी प्रक्रिया, अदालत में महिलाओं और पुरुषों के अधिकार, दस्तावेज़ संबंधित व्यभिचार के मामले)

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