न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा दीवार

 

न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा दीवार

भारत का संविधान संवैधानिक सर्वोच्चता और कानूनी शासन के सिद्धांतों पर आधारित है। किसी भी कानून या सरकारी निर्णय को संविधान के अनुरूप बनाए रखने के लिए न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की शक्ति होती है। यह शक्ति न्यायपालिका को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी विधायी या कार्यकारी कार्रवाई को असंवैधानिक घोषित कर सके, यदि वह संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।


न्यायिक समीक्षा का अर्थ

न्यायिक समीक्षा वह प्रक्रिया है, जिसमें न्यायपालिका सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों और नीतियों की संवैधानिकता की जांच करती है। यदि कोई कानून संविधान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध पाया जाता है, तो सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट उसे अवैध घोषित कर सकते हैं।


भारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा का आधार

भारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा की शक्ति विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से दी गई है:

📌 अनुच्छेद 13: यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उसे शून्य (Null & Void) घोषित किया जा सकता है।
📌 अनुच्छेद 32 और 226: नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32) और हाईकोर्ट (अनुच्छेद 226) में याचिका दायर कर सकते हैं।
📌 अनुच्छेद 245-246: संसद और राज्य विधानसभाओं को मिले विधायी अधिकारों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
📌 अनुच्छेद 368: संविधान में संशोधन भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है।


न्यायिक समीक्षा के प्रकार

1️⃣ विधायी समीक्षा (Legislative Review)

  • इसमें संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता की जांच की जाती है।
  • यदि कोई कानून संविधान के मौलिक ढांचे (Basic Structure) के विरुद्ध है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।

2️⃣ कार्यकारी समीक्षा (Executive Review)

  • इसमें सरकार की नीतियों, आदेशों और निर्णयों की जांच की जाती है।
  • यह सुनिश्चित किया जाता है कि सरकार का कोई भी निर्णय संविधान के अनुरूप हो।

3️⃣ न्यायिक निर्णयों की समीक्षा (Judicial Review of Judgments)

  • सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अपने पूर्व के निर्णयों की समीक्षा कर सकते हैं।
  • संविधान पीठ (Constitution Bench) किसी पिछले निर्णय को बदल भी सकती है।

न्यायिक समीक्षा का महत्व

संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखना – कोई भी कानून संविधान से ऊपर नहीं हो सकता।
लोकतंत्र की रक्षा – यह सरकार को मनमानी करने से रोकता है।
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा – न्यायिक समीक्षा से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा होती है।
शक्तियों का संतुलन (Separation of Powers) – यह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखता है।


महत्वपूर्ण निर्णय (Judicial Review के उदाहरण)

📌 केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): इस केस में "मौलिक संरचना सिद्धांत" (Basic Structure Doctrine) स्थापित हुआ, जिसमें कहा गया कि संसद संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती।

📌 मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): न्यायिक समीक्षा को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया और कहा गया कि यह शक्ति संसद भी नहीं हटा सकती।

📌 गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967): इसमें कहा गया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती।


निष्कर्ष

न्यायिक समीक्षा भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है। यह संविधान की रक्षा करने और विधायिका तथा कार्यपालिका की शक्तियों पर नियंत्रण बनाए रखने का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। यह नागरिकों को यह भरोसा दिलाता है कि कोई भी कानून या सरकारी नीति उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगी। इस शक्ति का संतुलित और जिम्मेदार उपयोग भारत को एक मजबूत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र बनाए रखने में मदद करता है।


🎯 न्यायिक समीक्षा को चित्र के माध्यम से समझें

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
(भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जहाँ न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग किया जाता है।)


क्या आप न्यायिक समीक्षा के किसी विशेष पहलू पर और जानकारी चाहते हैं? 😊

Comments