संघवाद (Federalism) : भारत में केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन
भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है, जहां अलग-अलग भाषाएं, संस्कृतियां और परंपराएं मौजूद हैं। ऐसे में एक सशक्त शासन प्रणाली की आवश्यकता थी, जो देश की एकता को बनाए रखे और विभिन्न क्षेत्रों को उनकी विशेष पहचान और अधिकार भी दे। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान ने संघीय व्यवस्था (Federalism) को अपनाया।
संघवाद का मतलब है कि सरकार की शक्ति को दो या अधिक स्तरों में बांटा जाता है, ताकि सभी इकाइयों को अपने अधिकारों के अनुसार शासन करने की स्वतंत्रता मिले।
संघवाद का अर्थ और परिभाषा
संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें सत्ता को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विभाजित किया जाता है। यह प्रणाली शक्तियों के विकेंद्रीकरण (Decentralization of Power) को बढ़ावा देती है।
📌 डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने कहा था –
"संविधान ने भारत को संघीय ढांचे के साथ एकात्मक भावना प्रदान की है।"
भारत में संघीय संरचना की विशेषताएँ
भारतीय संविधान में संघवाद की कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं:
1️⃣ दोहरी सरकार की प्रणाली (Dual Government System)
भारत में दो स्तरों पर सरकार कार्य करती है –
✅ केंद्र सरकार (Union Government)
✅ राज्य सरकार (State Government)
इसके अलावा, 73वें और 74वें संशोधन के बाद स्थानीय सरकारें (ग्राम पंचायत और नगर पालिकाएं) भी शासन प्रणाली का हिस्सा बन गईं।
2️⃣ शक्तियों का विभाजन (Division of Powers)
संविधान में सरकार की शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित किया गया है:
📌 संघ सूची (Union List - अनुच्छेद 246, सूची 1): केंद्र सरकार के विषय (97 विषय) – रक्षा, विदेश नीति, रेलवे आदि।
📌 राज्य सूची (State List - अनुच्छेद 246, सूची 2): राज्य सरकार के विषय (66 विषय) – पुलिस, कृषि, स्वास्थ्य आदि।
📌 समवर्ती सूची (Concurrent List - अनुच्छेद 246, सूची 3): दोनों सरकारों के विषय (47 विषय) – शिक्षा, वन संरक्षण, श्रम कानून आदि।
3️⃣ लिखित एवं कठोर संविधान (Written and Rigid Constitution)
संविधान में संघीय ढांचे को सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं। इसे संशोधित करने की प्रक्रिया कठिन (Rigid) रखी गई है।
4️⃣ स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)
संघीय ढांचे को बनाए रखने के लिए भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5️⃣ द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature)
भारत की संसद में दो सदन हैं:
✅ लोकसभा (House of the People) – जनप्रतिनिधियों का सदन।
✅ राज्यसभा (Council of States) – राज्यों के प्रतिनिधित्व का सदन।
राज्यसभा का मुख्य उद्देश्य राज्यों के हितों की रक्षा करना है।
भारतीय संघवाद की प्रकृति: संघात्मक या एकात्मक?
भारत का संघवाद पारंपरिक संघीय देशों (जैसे अमेरिका) से भिन्न है। भारतीय संघवाद में केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं। इस कारण इसे "संघात्मक प्रणाली के साथ एकात्मक प्रवृत्ति" (Quasi-Federal System) कहा जाता है।
📌 भारत का संघवाद पूरी तरह संघीय नहीं है, क्योंकि –
✔️ केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
✔️ राज्य किसी भी समय संविधान में संशोधन द्वारा पुनर्गठित किए जा सकते हैं (अनुच्छेद 3)।
✔️ राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के तहत केंद्र, राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकता है।
संघवाद को मजबूत करने वाले महत्वपूर्ण प्रावधान
📌 अनुच्छेद 1: भारत को "राज्यों का संघ" कहा गया है।
📌 अनुच्छेद 245-255: विधायी शक्तियों का वितरण।
📌 अनुच्छेद 280: वित्त आयोग की स्थापना।
📌 अनुच्छेद 368: संविधान संशोधन की प्रक्रिया।
📌 अनुच्छेद 371: विशेष राज्यों के लिए विशेष प्रावधान।
संघीय व्यवस्था को मजबूत करने वाले प्रमुख मामले
📌 केसवानंद भारती केस (1973):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संघवाद संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
📌 एस. आर. बोम्मई केस (1994):
इस फैसले में कहा गया कि संघवाद भारतीय संविधान का मूल तत्व है, और केंद्र सरकार इसे नष्ट नहीं कर सकती।
📌 राजेंद्र नायर बनाम केरल राज्य (2020):
इस केस में न्यायालय ने कहा कि राज्यों को वित्तीय स्वतंत्रता देना संघवाद की आत्मा है।
संघवाद का महत्व
✅ राज्यों को स्वायत्तता मिलती है।
✅ स्थानीय जरूरतों के अनुसार शासन करने की सुविधा।
✅ सत्ता का विकेंद्रीकरण, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है।
✅ राष्ट्रीय एकता और विविधता में सामंजस्य बना रहता है।
संघवाद से जुड़ी चुनौतियाँ
📌 राज्यों की सीमित वित्तीय शक्ति: केंद्र सरकार के पास अधिकांश वित्तीय संसाधन होते हैं, जिससे राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता नहीं मिल पाती।
📌 राज्यों की स्वतंत्रता पर खतरा: केंद्र सरकार अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का उपयोग कर राज्य सरकारों को बर्खास्त कर सकती है।
📌 केंद्र और राज्यों के बीच टकराव: कभी-कभी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों को लेकर टकराव की स्थिति बन जाती है।
📌 वित्तीय आयोग की सिफारिशें: राज्यों को मिलने वाले वित्तीय संसाधनों के बंटवारे को लेकर विवाद होते रहते हैं।
संघवाद को मजबूत करने के उपाय
🔹 राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता देना।
🔹 संविधान संशोधन द्वारा राज्यों के अधिकार बढ़ाना।
🔹 संघीय सहयोग बढ़ाने के लिए "अंतरराज्यीय परिषद" को सक्रिय करना।
🔹 राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना।
निष्कर्ष
संघवाद भारतीय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण आधार है। यह केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखता है और शासन व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाता है। हालांकि, भारत का संघवाद पूर्ण रूप से संघीय नहीं है, बल्कि इसमें एकात्मकता की प्रवृत्ति भी देखी जाती है।
📌 संघीय ढांचा मजबूत होने से लोकतंत्र अधिक समावेशी और प्रभावी बनता है।
🎯 संघवाद को चित्र के माध्यम से समझें

(भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जहाँ संघवाद से जुड़े मामलों का निपटारा किया जाता है।)
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