दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत जाँच और गिरफ्तारी प्रक्रिया

 


दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत जाँच और गिरफ्तारी प्रक्रिया

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code - CrPC) भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अंतर्गत अपराधों की जाँच, गिरफ्तारी, सुनवाई और दंड की प्रक्रिया निर्धारित की जाती है। इस लेख में हम CrPC के तहत जाँच और गिरफ्तारी प्रक्रिया को विस्तार से समझेंगे।

1. जाँच प्रक्रिया (Investigation Process)

CrPC के तहत जाँच प्रक्रिया का उद्देश्य अपराध के साक्ष्य एकत्र करना और दोषियों को न्याय के दायरे में लाना है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी की जाती है:

(i) प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना - धारा 154

  • जब किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) की सूचना पुलिस को दी जाती है, तो पुलिस को अनिवार्य रूप से FIR दर्ज करनी होती है।
  • FIR में अपराध का विवरण, आरोपी का नाम (यदि ज्ञात हो), घटना की तारीख, समय और स्थान शामिल होता है।

(ii) साक्ष्य एकत्र करना - धारा 161 और 162

  • पुलिस जाँच के दौरान गवाहों के बयान दर्ज करती है।
  • धारा 161 के तहत गवाहों के बयान लिए जाते हैं, लेकिन इन बयानों को न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

(iii) चिकित्सा परीक्षण - धारा 53 और 54

  • यदि अपराध से संबंधित आरोपी या पीड़ित का चिकित्सा परीक्षण आवश्यक होता है, तो पुलिस न्यायालय की अनुमति से यह करवा सकती है।

(iv) गिरफ्तारी से पहले जाँच - धारा 157

  • संज्ञेय अपराध के मामलों में पुलिस को जाँच शुरू करने का अधिकार होता है।
  • पुलिस को यह सुनिश्चित करना होता है कि अपराध गंभीर है और जाँच आवश्यक है।

(v) चार्जशीट दाखिल करना - धारा 173

  • जाँच पूरी होने के बाद, पुलिस रिपोर्ट (Charge Sheet) न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है।
  • इसमें अपराध से जुड़े सभी साक्ष्य, गवाहों के बयान और अन्य प्रमाण शामिल होते हैं।

2. गिरफ्तारी प्रक्रिया (Arrest Process)

गिरफ्तारी किसी भी व्यक्ति को कानून के अनुसार हिरासत में लेने की प्रक्रिया है। CrPC के तहत गिरफ्तारी निम्नलिखित प्रकारों में होती है:

(i) संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध में गिरफ्तारी

  • संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense): पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है। (धारा 41)
  • असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offense): पुलिस को गिरफ्तारी के लिए न्यायालय से अनुमति लेनी होती है। (धारा 42)

(ii) गिरफ्तारी के अधिकार और प्रक्रिया

  • पुलिस को गिरफ्तारी के दौरान आरोपी को उसके अधिकारों की जानकारी देनी होती है।
  • आरोपी को अधिकतम 24 घंटे के भीतर न्यायालय में पेश किया जाना अनिवार्य है। (धारा 57)
  • गिरफ्तारी के दौरान अत्यधिक बल प्रयोग नहीं किया जा सकता, जब तक कि आवश्यक न हो। (धारा 46)

(iii) गिरफ्तारी के बाद जमानत

  • जमानत योग्य अपराधों (Bailable Offenses) में आरोपी को पुलिस या मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत पर छोड़ा जा सकता है।
  • गैर-जमानती अपराधों (Non-Bailable Offenses) में केवल न्यायालय द्वारा जमानत दी जा सकती है।

(iv) महिला और बच्चों की गिरफ्तारी - धारा 46(4)

  • महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जब तक कि विशेष परिस्थितियों में महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में यह आवश्यक न हो।
  • 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को गिरफ्तार करने से पहले विशेष ध्यान दिया जाता है।

(v) व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गिरफ्तारी - धारा 50 और 50A

  • पुलिस को गिरफ्तारी के बाद आरोपी को तुरंत उसके अपराध की जानकारी देनी होती है। (धारा 50)
  • आरोपी के परिवार या दोस्त को उसकी गिरफ्तारी की सूचना देना अनिवार्य है। (धारा 50A)

निष्कर्ष

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत जाँच और गिरफ्तारी प्रक्रिया अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने और निर्दोष व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाई गई है। इसमें पुलिस को उचित अधिकार दिए गए हैं, लेकिन नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी स्पष्ट दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं। न्यायपालिका और पुलिस को इन प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो और कानून का शासन कायम रहे।

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