किशोर न्याय: क्या नाबालिगों को वयस्क अपराधियों की तरह सजा मिलनी चाहिए?
प्रस्तावना
किशोर न्याय प्रणाली का मुख्य उद्देश्य नाबालिग अपराधियों का सुधार और पुनर्वास करना है, न कि उन्हें कठोर दंड देना। लेकिन जब कोई किशोर जघन्य अपराध करता है, तो यह बहस उठती है कि क्या उसे वयस्क अपराधियों की तरह सजा दी जानी चाहिए। इस लेख में हम इस संवेदनशील मुद्दे के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करेंगे।
1. भारत में किशोर न्याय प्रणाली
भारत में किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) लागू है, जो 18 वर्ष से कम उम्र के अपराधियों के लिए एक अलग न्यायिक प्रक्रिया निर्धारित करता है। लेकिन इस अधिनियम में 16 से 18 वर्ष के किशोरों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों (जैसे हत्या, बलात्कार, एसिड अटैक) के मामलों में उन्हें वयस्क अपराधियों की तरह सजा देने का प्रावधान है।
2. नाबालिगों को वयस्क अपराधियों की तरह सजा देने के पक्ष में तर्क
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गंभीर अपराधों में बढ़ोतरी: कुछ किशोर जानते हुए भी गंभीर अपराध करते हैं, क्योंकि उन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है।
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इंसाफ का सवाल: पीड़ित के परिवारों को न्याय मिलना चाहिए, चाहे अपराधी की उम्र कुछ भी हो।
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जघन्य अपराधों की प्रकृति: जब कोई किशोर किसी अपराध को सुनियोजित तरीके से अंजाम देता है, तो उसे अपने कृत्य के परिणाम भुगतने चाहिए।
3. नाबालिगों को वयस्कों की तरह सजा देने के खिलाफ तर्क
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मनोवैज्ञानिक विकास: वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों का मानसिक और भावनात्मक विकास पूर्ण नहीं होता।
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सुधार की संभावना: किशोर अपराधियों को सुधारकर उन्हें समाज में पुनः एकीकृत करना संभव है।
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कठोर सजा के नकारात्मक प्रभाव: जेल में रहने से किशोर और अधिक अपराधी मानसिकता वाले बन सकते हैं।
4. संभावित समाधान और सुधार
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मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन: प्रत्येक किशोर अपराधी का मानसिक और भावनात्मक आकलन किया जाना चाहिए ताकि यह तय हो सके कि उसे किस प्रकार की सजा दी जाए।
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सुधारात्मक संस्थानों को मजबूत करना: किशोर सुधारगृहों में शिक्षा, काउंसलिंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण की बेहतर सुविधाएँ होनी चाहिए।
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पारिवारिक और सामाजिक हस्तक्षेप: अपराध रोकने के लिए परिवार और समाज की भूमिका को मजबूत किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
किशोर अपराधियों को वयस्कों की तरह सजा देने का निर्णय आसान नहीं है। इसका संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें अपराध की गंभीरता, किशोर का मानसिक विकास और सुधार की संभावना को ध्यान में रखा जाए। हमें सजा देने से ज्यादा अपराध रोकने और किशोरों को सही दिशा में मार्गदर्शन देने पर ध्यान देना चाहिए।

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