बचाव का अधिकार: आपराधिक मामलों में आरोपी के अधिकार
किसी भी कानूनी व्यवस्था में न्याय और निष्पक्षता की नींव आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा पर निर्भर करती है। भारत में, संविधान और विभिन्न विधियों के तहत एक आरोपी को कई अधिकार प्राप्त हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
1. संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार
(क) अनुच्छेद 20: दंड प्रक्रिया से सुरक्षा
- दो बार सजा का निषेध: किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती (Double Jeopardy)।
- पश्चदृष्टि कानून (Ex Post Facto Law): किसी व्यक्ति को उस कार्य के लिए दंडित नहीं किया जा सकता, जो अपराध किए जाने के समय कानूनी रूप से अपराध नहीं था।
- आत्मदोषारोपण से सुरक्षा: किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
(ख) अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
यह अनुच्छेद जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी को भी कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना दंडित नहीं किया जा सकता।
(ग) अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा
- गिरफ्तारी के कारणों की सूचना: किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने पर उसे गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराया जाना चाहिए।
- कानूनी सलाह लेने का अधिकार: गिरफ्तार व्यक्ति को एक वकील नियुक्त करने और कानूनी सलाह लेने का अधिकार है।
- न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी: गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
2. आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत अधिकार
(क) जमानत का अधिकार
- हल्के अपराधों (Bailable Offences) में आरोपी को जमानत पाने का अधिकार होता है।
- गंभीर अपराधों (Non-Bailable Offences) में न्यायालय की अनुमति से जमानत दी जा सकती है।
(ख) निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई का अधिकार
- हर आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।
- सुनवाई सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए, जिससे प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।
- मुकदमे को अनावश्यक रूप से लंबा नहीं किया जाना चाहिए।
(ग) बचाव पक्ष का अधिकार
- आरोपी को अपने पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने और गवाहों से जिरह करने का अधिकार है।
- यदि आरोपी आर्थिक रूप से कमजोर है, तो उसे सरकार द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
(घ) पुलिस यातना और जोर-जबरदस्ती से सुरक्षा
- पुलिस हिरासत में आरोपी के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता।
- आरोपी को मेडिकल जांच का अधिकार प्राप्त है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में पुलिस हिरासत में सुरक्षा उपायों को स्पष्ट किया है।
3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत अधिकार
- आरोपी के मौखिक या लिखित बयान को तब तक सबूत नहीं माना जाता जब तक कि वह स्वतंत्र रूप से दिया गया हो।
- पुलिस द्वारा जबरदस्ती लिया गया स्वीकारोक्ति बयान मान्य नहीं होता।
निष्कर्ष
आपराधिक मामलों में आरोपी के अधिकार उसकी स्वतंत्रता और न्याय की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। न्याय प्रणाली का कर्तव्य है कि वह आरोपी के साथ निष्पक्ष व्यवहार करे और उसके संवैधानिक तथा कानूनी अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। न्याय का असली उद्देश्य सिर्फ अपराधियों को दंडित करना नहीं, बल्कि निर्दोषों को बचाना भी है।

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